कोरोना में स्कूल खोलने की चुनौती
- By Vinod --
- Saturday, 29 Jan, 2022
Challenge of opening school in Corona
कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों ने हरियाणा को हलकान किया हुआ है, लेकिन अब मामलों में आ रही कमी जहां राहत वाली बात है, वहीं तेजी से विकासमान इस प्रदेश की खुशहाली के लिए भी आवश्यक है। राज्य सरकार ने एक फरवरी से 10वीं,11वीं और 12वीं के स्कूलों को खोलने की घोषणा कर दी है, हालांकि इसके साथ ही अब विश्वविद्यालय, कॉलेज, पॉलिटेक्निक, आईटीआई और कोचिंग संस्थान खोलने की भी घोषणा की है। यह सही निर्णय है, लेकिन इस समय सावधान रहने की भी जरूरत है। बेशक, कोरोना वायरस और ओमीक्रोन अब उतने घातक नहीं रह गए हैं, लेकिन क्योंकि समाज में एक व्यक्ति दूसरे से जुड़ा है और जिन्हें पहले से रोग होते हैं, उनके लिए कोरोना और ओमीक्रोन सर्वाधिक घातक साबित होते हैं। हरियाणा में एक और मसला सामने आ रहा है, जिसमें प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन की ओर से कहा गया है कि वह एक फरवरी से सभी स्कूलों को खोल देगी। हालांकि सरकार ने अभी सिर्फ तीन बड़ी कक्षाओं को ही खोलने का निर्णय लिया है और अब विश्वविद्यालय, कॉलेज आदि उच्च शिक्षण संस्थानों को खोलने का ऐलान किया गया है, लेकिन प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन की ओर से छोटी कक्षाओं को भी खोलने के ऐलान से विडम्बनापूर्ण स्थिति बन गई है। आखिर प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन सरकार के निर्णय के खिलाफ कैसे जा सकती है और उसकी दलील में कितना दम है। क्या छोटी कक्षाओं के बच्चों को सच में स्कूल में बुलाया जा सकता है? यह तब है, जब सभी बच्चों को वैक्सीन नहीं लगी है।
देशभर में प्राइवेट स्कूल संचालक राज्य सरकारों पर दबाव बना रहे हैं कि स्कूलों को खोल दिया जाए, लेकिन राज्य सरकारें अभी इस पर निर्णय लेते हुए सावधानी बरत रही हैं। आखिर ऐसा हो भी क्यों नहीं, चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के दौरान केवल वर्चुअल रैली की अनुमति राजनीतिक दलों को दी है, इसका मकसद भीड़ जुटने से रोकना है। भीड़ कोरोना वायरस के संक्रमण को बढ़ाएगी। ऐसे में चुनावी रैलियां अगर वर्चुअल हो रही हैं तो फिर छोटे बच्चों को किस प्रकार स्कूलों में भीड़ के रूप में जुटने दिया जा सकता है। बीते वर्ष अक्तूबर में एकाएक स्कूलों को खोलने के आदेश दिए गए थे। इसके बाद बच्चों ने स्कूलों में जाना शुरू कर दिया। हालांकि स्कूलों के बाहर बच्चों की भारी भीड़ जमा होती थी, उस समय स्कूल स्टाफ की ओर से न तो बच्चों को पंक्तिबद्ध करके स्कूल में प्रवेश दिलाया जाता था और न ही कक्षाओं में ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन होता था। अनेक जगह बच्चों का समूह ही कोरोना संक्रमित पाया गया था। लेकिन अब फिर स्कूलों को खोलने की हड़बड़ी मचाई जा रही है। बड़ी कक्षाओं के बच्चों के संबंध में यह समझा जाता है कि वे खुद को मैनेज कर सकते हैं, लेकिन छोटे बच्चों को लेकर हमेशा खतरा बना रहता है। वैक्सीन लगाने का मामला सर्वोच्च न्यायालय में भी आया है। बहुत से लोग अभी भी वैक्सीन नहीं लगवा रहे, इसकी वजह अनेक हैं। वहीं सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि वह वैक्सीन के लिए किसी पर दबाव नहीं बना रही। यही वजह है कि हरियाणा में शिक्षण संस्थानों को खोले जाते समय संस्थान प्रबंधन को बच्चों को यह सलाह देने के लिए निर्देशित किया गया है कि 15 साल से ऊपर के किशोर कक्षाएं लगाने आएं तो कम से कम वैक्सीन की पहली डोज अवश्य लगवाएं।
सवाल यह है कि क्या कोरोना और ओमीक्रोन को इतने हल्के में लिया जा सकता है, कि सबकुछ खोलने की आपाधापी में छोटी से बड़ी कक्षाएं शुरू करवा दी जाएं और उन जगहों पर जहां भीड़ का आना लाजमी होता है,को भी शुरू कर दिया जाए। हरियाणा में सिनेमा, मल्टीप्लेक्स, थियेटर को 50 फीसदी क्षमता के साथ खोलने के आदेश हैं, ऐसे में 100 लोगों की क्षमता के एक थियेटर में केवल 50 लोग ही सोशल डिस्टेंसिंग के साथ बैठ सकते हैं। यह सही भी है, सरकार ने राज्य में दुकानों को खोलने का वक्त भी एक घंटा बढ़ा दिया है। दरअसल, यह इसलिए जरूरी है क्योंकि वायरस के संबंध में अभी कुछ स्पष्ट नहीं है, उसका फैलाव बेहद तेजी से होता है और ओमीक्रोन तो एक साथ अनेक लोगों को अपनी चपेट में लेने के लिए बदनाम है। तब एकाएक छूट देने पर व्यवस्था हाथों से निकल सकती है और बीते वर्ष अप्रैल की भांति देश में त्राहिमाम की स्थिति बन सकती है। मालूम हो, बीते 24 घंटे में कोरोना की वजह से पंजाब और हरियाणा में 47 लोगों की जान चली गई। पंजाब में मोहाली में एक साथ 693 नए संक्रमित मिलना, इसका उदाहरण है कि अगर नियंत्रण न रखा गया तो हालात कैसे बन सकते हैं।
वास्तव में कोरोना वायरस के साथ जीवन अब मजबूरी हो गया है। कोरोना एक भी मामला रहते, यह प्रत्येक के लिए खतरा बना रहेगा। तब प्रत्येक के लिए सावधानी बरतना जरूरी हो गया है, विशेषकर बुजुर्गों के लिए। बीते दो वर्षों के दौरान जीवन शैली में भारी बदलाव आया है, लेकिन इस बदलाव को बरकरार रखे जाने की आवश्यकता है। हालांकि स्कूलों के संबंध में प्रभावी निर्णय की भी जरूरत है। बच्चों के नियमित स्कूल न जाने की वजह से उनके सीखने-समझने की शक्ति प्रभावित हो रही है। शारीरिक और मानसिक रूप से उनके समक्ष चुनौतियां आ रही हैं। स्कूल खोले जाने चाहिएं लेकिन इस संबंध में कोई जल्दबाजी मुश्किल और बढ़ाएगी।